किस स्त्री का बुद्धिमान मनुष्य को त्याग कर देना चाहिए – Chankya Niti In Hindi

Hello दोस्तों,

आज हम आपको आचार्य चाणक्य के बारे में बताएंगे और उनके द्वारा लिखी गयी Chankya Niti के बारे में बात करेंगे। आचार्य चाणक्य राजा चंदरगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। अपनी कुटिल नीतियों के कारण उन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता था।

उनकी सादगी का पता इस बात से चलता है की वो एक महामंत्री होने के बाद भी एक महल के बजाए एक कुटिया में निवास करते थे। उनके द्वारा लिखी गयी नीतिया जो की उन्होंने चाणक्य नीति पुस्तक में लिखी है आज भी उतनी ही कारगर है जितनी चंदरगुप्त मौर्य के समय में थी।

यदि आप अपने जीवन में बदलाव लाना चाहते हैं ये चाणक्य नीति आप सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आप चाणक्य नीति को पढ़ के अपने जीवन को जीने का सही तरीका सीख सकते है।

तो चलिए इस चाणक्य नीति की शुरुआत करते हैं प्रथम अध्याय से।

मूर्खों को उपदेश नहीं देना चाहिए

1. आचार्य चाणक्य ने ईश्वर को प्रणाम करते हुए अपने ग्रंथ की शुरुआत की है। आचार्य चाणक्य के अनुसार मूर्ख शिष्यों को उपदेश देना, दुष्ट स्त्री का भरण-पोषण करना और दुखी व्यक्तियों की संगत करने से विद्वान मनुष्य को हमेशा दुख ही भोगने पड़ते हैं। इसीलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि कभी भी मुर्ख व्यक्ति को सत्कार्य की तरफ प्रेरित ना करें क्योंकि मूर्खों को उपदेश देना मूर्खता ही होती है।

इसी प्रकार चरित्रहीन स्त्री से हमेशा दूर रहना चाहिए क्योंकि चरित्रहीन स्त्री बदनामी का कारण बन सकती है। इसीलिए बुद्धिमान मनुष्य को चरित्रहीन स्त्री से हमेशा दूर रहना चाहिए।

आचार्य चाणक्य के अनुसार दुखी मनुष्य से कभी भी सुख प्राप्त नहीं हो सकता इसीलिए दुखी मनुष्य की संगत से हमें बचना चाहिए।

बुरे वक़्त के लिए धन बचाना चाहिए

2. वह मनुष्य बुद्धिमान होता है जो बुरे समय के लिए धन की बचत करता है। इसी प्रकार स्त्री भी धन के समान है , इसीलिए उसकी भी रक्षा करें। लेकिन इससे पूर्व मनुष्य को अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए। यदि वह स्वयं सुरक्षित है, तभी वह धन और स्त्री की रक्षा करने में समर्थ होगा।

3. Chankya Niti के अनुसार विपत्ति काल के लिए मनुष्यों को धन का संचय करना चाहिए। लेकिन कभी भी यह नही सोचे कि धन के द्वारा विपत्ति को दूर करने में समर्थ हो जायेंगे। लक्ष्मी चंचल होती हैं इसीलिए वह का कहीं भी नहीं ठहरती है। धन का संचय मनुष्य कि बुद्धिमता का परिचय हैं , लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इससे उसका विपत्तिकाल नष्ट हो जाएगा परन्तु बचाया हुआ धन विपत्ति काल में उसकी सहायता कर सकता है।

जिस स्थान पर आदर सम्मान न हो उस स्थान को छोड़ देना चाहिए

4. जिस स्थान पर मनुष्य का आदर -सम्मान न हो, आजीविका या रोजगार के साधन न हो ,अनुकूल मित्र एबं सम्बन्धी न हो, पढ़ाई -लिखाई के कोई साधन न हो ऐसे स्थान को बिना कोई देरी किये छोड़ देना चाहिए।

5. आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसा स्थान बुद्धिमान व्यक्तियों के लिए उपयुक्त नहीं है जहां पर यह 5 मूलभूत सुविधाएं ना हो। सबसे पहले ब्राह्मण फिर न्यायप्रिय राजा, धन संपन्न व्यापारी, जलयुक्त नदियां और सुयोग्य चिकित्सक। जिस स्थान पर ये सब ना हो उस स्थान का बुद्धिमान मनुष्य को त्याग कर देना चाहिए।

6. आचार्य चाणक्य के अनुसार जिस स्थान पर रहने वाले लोग ईश्वर में आस्था ना रखते हैं अर्थात नास्तिक हों। लोक परलोक के प्रति विश्वास ना रखते हों। लोक परलोक का जिन्हें कोई भय ना हो। जहां लोग परोपकार और दानशीलता से रहित हो। बुद्धिमान मनुष्य को ऐसे स्थान का त्याग कर देना चाहिए।

Chankya Niti के अनुसार इन चारों को परीक्षा कब होती है

7. आचार्य चाणक्य के अनुसार जब सेवक को कोई उत्तरदायित्व दिया जाता है यह कोई जिम्मेदारी दी जाती है तब उसकी परीक्षा होती है। इसी प्रकार कष्ट और संकट काल के समय हमारे मित्रों की परख होती है। दुख और असाध्य बीमारी में हमारे सगे संबंधियों की परीक्षा होती है और इसी प्रकार यदि हम धनहीन या गरीब हो जाएं तो उस समय पत्नी की परीक्षा होती है।

8. आचार्य चाणक्य के अनुसार जो स्त्री कटु वचन बोलती हो कड़वे वचन बोलती हो, ऐसा मित्र पाप युक्त आचरण करता हो, जो विश्वासघाती हो पलट कर जवाब देता हो इन तीनों की संगत करने वाले मनुष्य के निकट मृत्यु होता है। ऐसा व्यक्ति कभी भी मृत्यु को प्राप्त हो सकता है इसीलिए बुद्धिमान मनुष्य को इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए।

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