Rahim ke dohe in hindi

दोस्तों,

आज मैं आपको rahim ke dohe बताने जा रहा हूँ जिनको पढ़ के आप जरूर कुछ न कुछ सीखेंगे। ये dohe आपके जीवन में positive changes लाएंगे। Rahim जी का जन्म अकबर के शासन काम में हुआ था। वो अपने time के मशहूर कवि थे। 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर !
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर !!

अर्थ : इस दोहे में रहीम जी ने कहा है की जैसे बड़े होने का यह मतलब नहीं हैं की अपनी ही अकड़ में रहे और दुसरो को अपने से नीचा समझे। उससे किसी का भला हो. जैसे खजूर का पेड़ तो बहुत बड़ा होता हैं लेकिन उसका फल इतना दूर होता है की तोड़ना मुश्किल का कम है | हमें  अपना  स्वभाव खजूर के पेड़  के जैसा नहीं रखना चाहिए  जिस तरह से खजूर का पेड़ बहुत ऊंचा होता है वह राहगीर को  छाया नहीं देता है और उसका फल बहुत ऊंचा लगता है। इसलिए न वो फल देने के काम आता है न ही छाया देने के।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि!
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि!!

अर्थ: इस दोहे में रहीम जी ने  कहा है की  जैसे बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि जो काम सुई कर सकती है उस काम को तलवार नहीं कर सकती। ठीक उसी प्रकार जिसका काम होता है वह अपना काम खुद ही कर सकता है ।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय ||

अर्थ :  इस दोहे  में रहीम जी कहते है की जैसे जब कोई भी व्यक्ति दुखी होता है तो भगवान् को याद करता  है । लेकिन  जब  सुख पा लेता है तो  कोई याद नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही | इसिलए कभी भी भगवान्  को याद करना हो तो दोनों परिस्थियों  में करे चाहे सुख हो या , दुःख हो क्योकि दोनों चीज़ भगवान् के हाथों  में होती है ।

जो  रहीम  उत्तम प्रकति , का  करी सकत  कुसंग ।
चन्दन विष व्यापे नहीं , लिपटे रहत भुजंग ।।

अर्थ : इस दोहे में रहीम जी कहते है की जो मनुष्य अच्छे स्वभाव  के होते है उन्हें कोई  भी बुरी सगंत के लोग उन्हें  बिगाड़ नहीं सकते । जो  मनुष्य ठान ले की उसे किसी भी चीज़ से फर्क नहीं पड़ता वह किसी की भी बातों में नहीं  पड़ता और ना ही किसी की बुरी संगत में आकर बिगड़ता है । जिस प्रकार चन्दन के पेड़ पर जहरीले सांप लिपटे रहते है पर वह अपना जहरीला विष उस पर नहीं छोड़ पाते । ठीक उसी तरह मनुष्य को भी ऐसा होना चाहिए ।

रूठे सूजन मनाइए , जो रूठे सौ  बार ।
रहिमन  फिरि  फिरि पोइए , टूटे  मुक्ता  हार ।।

अर्थ:  इस दोहे में रहीम जी कहते है की  जो भी आपको प्रिये हो अगर वो आप से सौ बार भी रूठता है तो उसे मना लेना चाहिए । जिस प्रकार मोतियों की माला टूट जाए तो वह बिखर जाती है इसीलिए  मोतियों को पिरोया जाता है और उस माला को पहना जाता है क्योकि वह सबको पसंद आती है । ठीक उसी तरह जो अपना हो उसे मना लेना चाहिए क्योकि वह साथ में अच्छा लगता है और सबके मन को भाता है।

समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात|
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात||

अर्थ: इस दोहे में रहीम जी  कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। जब उसके  झड़ने का समय आने पर वह झड़ भी  जाता है. ठीक उसी तरह  सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है| और खुशी के समय घमंड करना भी व्यर्थ है।

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय |
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ||

अर्थ . इस दोहे में रहीम जी कहते है की  अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को और खुद को ख़ुशी हो | कभी भी कोई बात बोलने से पहले सोच समझ लेना चाहिए जिससे की आपकी बात का किसी को बुरा ना लगे और दूसरा व्यक्ति भी आपसे खुश रहे। हमेशा दुसरो की तारीफ़ करे, दुसरो से हमेशा शांत मन से बात करे। कभी किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए। हमेशा  मीठी  वाणी बोलनी चाहिए ।

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