एक बार की बात है संत नामदेव शिष्यों को ज्ञान और भक्ति का प्रवचन रहे थे। तभी वहां बैठे एक शिष्य ने प्रश्न किया की, “गुरुदेव, हमें बताया जाता कि ईश्वर हर जगह मौजूद है। यदि ऐसा है तो वह हमें कभी दिखाई क्यों नहीं देता है? हम कैसे मान लें कि ईश्वर सचमुच है। और यदि ईश्वर सचमुच है तो हम उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं?”
नामदेव जी ने एक शिष्य को एक लोटा पानी और थोड़ा-सा नमक लाने का आदेश दिया। शिष्य दोनों चीजें लेकर आ गया। नामदेव ने फिर उस शिष्य से कहा, “पुत्र, तुम इस नमक को पानी के लोटे में डाल कर मिला दो।” शिष्य तो ने ठीक वैसा ही किया।
संत बोले, “बताइए, क्या इस पानी में तुम में से किसी को नमक दिखाई रहा है?” सब ने कहा नहीं और नही में सिर हिला दिया। तब गुरू जी ने कहा ठीक है! अब तुम में से कोई जरा इसे चख कर देखे कि क्या चखने पर नमक का स्वाद आ रहा है या नहीं?
तब एक शिष्य ने पानी को चखते हुए बोला जी हां नमक का स्वाद आ रहा है। तब गुरु जी ने बोला ठीक है अब इस पानी को उबालो। उस शिष्य ने वैसा ही किया और उस लौटे में रखे पानी को उबालना शुरू कर दिया।
जब सारा पानी भाप बनकर उड़ गया तो नामदेव जी ने शिष्यों से कहा किए अब लौटे में देखो क्या है। शिष्यों ने लोटे में देखा और कहा कि हमें इसमें नमक के कण दिखाई दे रहे हैं।
तब नामदेव जी शिष्यों को समझाते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार तुमने पानी में नमक के स्वाद को अनुभव कर लिया लेकिन नमक को पानी में नहीं देख पाए ठीक उसी प्रकार इस संसार में तुम्हें ईश्वर हर जगह दिखाई नहीं देता पर तुम उसे अनुभव कर सकते हो। जिस तरह आग की गर्मी से पानी भाप बनकर उड़ गया और नमक दिखाई देने लगा ठीक उसी प्रकार तुम भक्ति, ध्यान और सत्कर्म के द्वारा अपने विकारों और दुर्गुणों का अंत कर के ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो।